Read this content from Dr Gaurav Pradhan. How deep this filth is in our society. Boycott is the only peaceful and long term solution !!
जनवरी 2018 में इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतनयाहू भारत के ऐतिहासिक दौरे पर आए थे। उन्होंने बॉलीवुड की हस्तियों के साथ सेल्फी ली और बड़े सम्मान से अपने टि्वटर हैंडल से पोस्ट किया। यह लिखते हुए कि क्या मेरी बॉलीवुड सेल्फी ऑस्कर वाली हॉलीवुड सेल्फी को मात देगी। लेकिन इस सेल्फी में तीन सुपरस्टार नहीं थे। मालूम है कौन?
तीनों खान- आमिर खान, शाहरुख खान और सलमान खान। इन्होंने बेंजामिन नेतनयाहू से मिलने के निमंत्रण को ठुकरा दिया था। इनके घृणा का स्तर देखिए। और जिस समय 2020 में स्वतंत्रता दिवस भारत में मनाया जा रहा था, आमिर खान तुर्की जाकर आर्दोआन की पत्नी के साथ फोटो खिंचवा रहे थे। और कारण बताया यही फिल्म लाल सिंह चड्ढा की शूटिंग। तुर्की एक ऐसा देश जहां खलिफत विचारधारा वाले आर्दोआन की सरकार ने हागिया सोफिया जो कभी विश्व का सबसे बड़ा चर्च हुआ करता था को मस्जिद में तब्दील कर दिया था। दिल्ली दंगों पर भी तुर्की ने कितना घृणाजनक बयान दिया था।
आमिर खान आज सफाई दे रहे हैं कि कुछ लोगों को लग रहा है कि उन्हें भारत से प्रेम नहीं। एक तो मेरा ख्याल है प्रेम है या नहीं प्रमाणित करने की चीज नहीं है। भारत इतना मूर्ख नहीं है कि वह किसी से राष्ट्रप्रेम का प्रमाण मांगेगा। दूसरा कि आमिर खान ने बड़ी चालाकी से कहा 'कुछ लोगों को' लग रहा है। ठीक है कि अगर कुछ लोगों को ही लग रहा तो चिंता करने की जरूरत क्या थी? बाकी लोग तो फिल्म देख ही लेते न।
सबसे बड़ी बात कि देश के मसले पर आमिर खान ने बोला, लेकिन हिंदू आस्था पर जो इन्होंने पीके फिल्म के माध्यम से चोट की, इस पर एक शब्द भी नहीं बोला। क्या आमिर खान को मालूम नहीं कि जिस प्रकार से इन्होंने हिंदुओं के इमोशंस के साथ फिल्म पीके में खेला है, लोग इससे बहुत दुखी हैं। पीके फिल्म ने यह सुनिश्चित किया कि जहां पर आमिर खान पेशाब कर रहे थे उस जगह पर सूटकेस रखी हुई थी, जिस पर भगवान की तस्वीरें साटी हुई थी।
यदि वास्तव में आमिर खान को भारत से घृणा और हिंदू आस्था से घृणा के मुद्दे पर लोगों द्वारा खुलकर बोलने पर तकलीफ हुई होती, तो वे दोनों मुद्दे पर खुलकर माफी मांग लेते। लेकिन उन्होंने केवल एक मुद्दे पर स्वयं को सही साबित करते हुए चलते बनने का काम किया। क्या एक बार ये लोग अपने किए पाप पर यदि खुलकर माफी मांग लें, तो इनका ईगो नहीं हर्ट होगा?
किस इमोशंस की बात कर रहे हैं आमिर खान? इस देश में इमोशंस तो अफजल गुरु की बीवी और बच्चों के साथ भी भारत की मीडिया ने जोड़ा है। इसका मतलब क्या अफजल गुरु को फांसी नहीं दिया जाता? बल्कि सत्य तो यह है कि इमोशन और सेंटीमेंट आज तक केवल एक ही प्रकार के लोगों का देखा गया। बहुसंख्यकों का तो ना ही कोई इमोशन होता है और ना ही कोई आस्था।
इतना बयान भी आमिर खान का तब आया है जब इन्होंने अपनी पूरी कोशिश कर ली। अपने नेक्सस की पूरी ताकत झोंक दी। जब दी कश्मीर फाइल्स के साथ अन्याय हो रहा था, केवल 600 स्क्रीन मिले थे तब इन्होंने बयान नहीं दिया कि फिल्म बनाने में मेहनत लगती है। लेकिन आज उन्होंने बड़ी चालाकी से पूरे देश के पीवीआर स्क्रीन चैन को कब्जा लिया है। उन्होंने दर्शकों को फांसने की पूरी कोशिश कर ली है। अब कह रहे हैं फिल्म देखने के बाद तय करें कि अच्छी है या नहीं।
फिल्म देखने के बाद क्यों तय करें? पहले क्यों नहीं तय करें? क्या फिल्म अजमेर फाइल पर बन रही है? या फिर गोधरा में ट्रेन में जला दिए गए जिंदा कारसेवकों के ऊपर बनी है? क्या फिल्म नोआखाली के मुद्दे पर बनी है? या फिर मोपला पर बनी है? किस मुद्दे पर फिल्म बनी है कि देखने के बाद तय किया जाए अच्छी है या नहीं?
Read this content from Dr Gaurav Pradhan. How deep this filth is in our society. Boycott is the only peaceful and long term solution !!
जनवरी 2018 में इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतनयाहू भारत के ऐतिहासिक दौरे पर आए थे। उन्होंने बॉलीवुड की हस्तियों के साथ सेल्फी ली और बड़े सम्मान से अपने टि्वटर हैंडल से पोस्ट किया। यह लिखते हुए कि क्या मेरी बॉलीवुड सेल्फी ऑस्कर वाली हॉलीवुड सेल्फी को मात देगी। लेकिन इस सेल्फी में तीन सुपरस्टार नहीं थे। मालूम है कौन?
तीनों खान- आमिर खान, शाहरुख खान और सलमान खान। इन्होंने बेंजामिन नेतनयाहू से मिलने के निमंत्रण को ठुकरा दिया था। इनके घृणा का स्तर देखिए। और जिस समय 2020 में स्वतंत्रता दिवस भारत में मनाया जा रहा था, आमिर खान तुर्की जाकर आर्दोआन की पत्नी के साथ फोटो खिंचवा रहे थे। और कारण बताया यही फिल्म लाल सिंह चड्ढा की शूटिंग। तुर्की एक ऐसा देश जहां खलिफत विचारधारा वाले आर्दोआन की सरकार ने हागिया सोफिया जो कभी विश्व का सबसे बड़ा चर्च हुआ करता था को मस्जिद में तब्दील कर दिया था। दिल्ली दंगों पर भी तुर्की ने कितना घृणाजनक बयान दिया था।
आमिर खान आज सफाई दे रहे हैं कि कुछ लोगों को लग रहा है कि उन्हें भारत से प्रेम नहीं। एक तो मेरा ख्याल है प्रेम है या नहीं प्रमाणित करने की चीज नहीं है। भारत इतना मूर्ख नहीं है कि वह किसी से राष्ट्रप्रेम का प्रमाण मांगेगा। दूसरा कि आमिर खान ने बड़ी चालाकी से कहा 'कुछ लोगों को' लग रहा है। ठीक है कि अगर कुछ लोगों को ही लग रहा तो चिंता करने की जरूरत क्या थी? बाकी लोग तो फिल्म देख ही लेते न।
सबसे बड़ी बात कि देश के मसले पर आमिर खान ने बोला, लेकिन हिंदू आस्था पर जो इन्होंने पीके फिल्म के माध्यम से चोट की, इस पर एक शब्द भी नहीं बोला। क्या आमिर खान को मालूम नहीं कि जिस प्रकार से इन्होंने हिंदुओं के इमोशंस के साथ फिल्म पीके में खेला है, लोग इससे बहुत दुखी हैं। पीके फिल्म ने यह सुनिश्चित किया कि जहां पर आमिर खान पेशाब कर रहे थे उस जगह पर सूटकेस रखी हुई थी, जिस पर भगवान की तस्वीरें साटी हुई थी।
यदि वास्तव में आमिर खान को भारत से घृणा और हिंदू आस्था से घृणा के मुद्दे पर लोगों द्वारा खुलकर बोलने पर तकलीफ हुई होती, तो वे दोनों मुद्दे पर खुलकर माफी मांग लेते। लेकिन उन्होंने केवल एक मुद्दे पर स्वयं को सही साबित करते हुए चलते बनने का काम किया। क्या एक बार ये लोग अपने किए पाप पर यदि खुलकर माफी मांग लें, तो इनका ईगो नहीं हर्ट होगा?
किस इमोशंस की बात कर रहे हैं आमिर खान? इस देश में इमोशंस तो अफजल गुरु की बीवी और बच्चों के साथ भी भारत की मीडिया ने जोड़ा है। इसका मतलब क्या अफजल गुरु को फांसी नहीं दिया जाता? बल्कि सत्य तो यह है कि इमोशन और सेंटीमेंट आज तक केवल एक ही प्रकार के लोगों का देखा गया। बहुसंख्यकों का तो ना ही कोई इमोशन होता है और ना ही कोई आस्था।
इतना बयान भी आमिर खान का तब आया है जब इन्होंने अपनी पूरी कोशिश कर ली। अपने नेक्सस की पूरी ताकत झोंक दी। जब दी कश्मीर फाइल्स के साथ अन्याय हो रहा था, केवल 600 स्क्रीन मिले थे तब इन्होंने बयान नहीं दिया कि फिल्म बनाने में मेहनत लगती है। लेकिन आज उन्होंने बड़ी चालाकी से पूरे देश के पीवीआर स्क्रीन चैन को कब्जा लिया है। उन्होंने दर्शकों को फांसने की पूरी कोशिश कर ली है। अब कह रहे हैं फिल्म देखने के बाद तय करें कि अच्छी है या नहीं।
फिल्म देखने के बाद क्यों तय करें? पहले क्यों नहीं तय करें? क्या फिल्म अजमेर फाइल पर बन रही है? या फिर गोधरा में ट्रेन में जला दिए गए जिंदा कारसेवकों के ऊपर बनी है? क्या फिल्म नोआखाली के मुद्दे पर बनी है? या फिर मोपला पर बनी है? किस मुद्दे पर फिल्म बनी है कि देखने के बाद तय किया जाए अच्छी है या नहीं?