वर्ष 1997 बिहार
गया के मशहूर सर्जन उस दिन बहुत खुश थे। उनके आई पी एस दामाद ने उनके जन्मदिन पर उन्हें नई चमचमाती गाड़ी भेंट की थी।
वह गाड़ी उस समय की सबसे बड़ी गाड़ी थी, मारुति एस्टीम। इसके टक्कर की बस एक ही गाड़ी थी उस समय प्रीमियर पद्मिनी का एन ई मॉडल। उन्हें क्लीनिक जाने में अब दिक्कत नहीं थी। मारुति 800 अब मेम साहब के काम आएंगी।
ठीक तीन दिन के बाद उनके घर पर सत्ताधारी पार्टी के विधायक पहुंचे। डाक्टर साहब ने सोचा कि हो सकता है किसी की सर्जरी के लिए आए हों? मगर विधायक जी ने गाड़ी की खबर सुनी थी और उसे देखने आए थे। फिर चाय पीने के बाद उन्होंने डाक्टर साहब से अनुरोध किया कि एक राउंड शहर का लगाना चाहते हैं, क्या परमिशन है?
इतनी छोटी सी बात!! सर्जन साहब ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
गाड़ी पर घूमने चले गए विधायक जी और साथ में ड्राइवर भी गया।
सर्जन साहब को उस दिन अपनी पुरानी मारुति से ही क्लिनिक जाना पड़ा, क्योंकि दिन के 11 बजे तक गाड़ी नहीं लौटी। फिर शाम हो गई। डॉ साहब जब ऑपरेशन कर के घर लौटे तब भी गाड़ी नहीं आई। फिर उन्होंने अपने कंपाउंडर को विधायक जी के स्थानीय निवास पर भेजा तो पता चला कि विधायक जी नई एस्टीम पर बैठ कर कल ही पटना चले गए हैं...
अब इनका माथा ठनका और गुस्सा भी आने लगा, तब इन्होंने अपने कुछ साथियों से बातें कीं। पटना का नंबर मिला तो उन्होंने फोन लगाया। पटना स्थित विधायक आवास से सूचना मिली कि विधायक जी तो एक सप्ताह के दौरे पर पूर्णिया कटिहार चले गए हैं...
अब अंत में इन्होंने अपने एस पी दामाद को फोन लगाया। उन्होंने कहा कि घबराने की बात नहीं है, कुछ बात हो गई होगी, गाड़ी मिल जाएगी। एसपी साहब ने गया के एसपी से बातें की। तुरंत कार्रवाई की बात की गई, मामला हाईफाई था, लिहाजा पुलिस एक्शन में आ गई। मगर गाड़ी गया में नहीं मिली।
फिर 10 दिनों के बाद डाक्टर साहब को पता चला कि विधायक जी लौट आए हैं। वे भागे भागे विधायक जी के घर पहुंचे। विधायक जी बड़ी आत्मीयता से मिले। कार की बाबत उन्होंने कहा कि गाड़ी तो उन्होंने उसी दिन छोड़ दिया था और ड्राइवर को तेल के पैसे देकर वापस कर दिया था। जरूर ड्राइवर नई गाड़ी लेकर भाग गया है। अब डाक्टर साहब बेहद परेशान हो गए। ये नई समस्या खड़ी हो गई।
फिर शुरू हुई कार हंट। जहां जहां दामाद जी की पैरवी पहुंच सकती थी, वहां वहां पुलिस को अलर्ट किया गया। कुछ डॉक्टर भी इस काम में लगाए गए मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात!!!!!
फिर पटना के एक डॉक्टर मित्र ने कहा कि एक बार लालूजी से मिलकर अपनी समस्या बताइए, काम हो जाएगा।
तो लालू जी से मिलने पहुंचे गया के मशहूर सर्जन, जिनका दामाद एक आई पी एस था और जिनकी मंथली प्रैक्टिस उस जमाने में लाखों में थी। लालू जी के निजी चिकित्सक ने मुलाकात का इंतजाम किया था। सवेरे 9 बजे 1 अणे मार्ग में लालू जी से मिलना तय हुआ।
डॉक्टर साहब 8 बजे ही आवास के बाहर पहुंच गए। लालू जी के निजी चिकित्सक ने उन्हें रिसीव किया और दोनों अंदर की ओर बढ़े।
सहसा सर्जन साहब ठिठक कर रुक गये। सामने बंगले के पोर्टिको में उनकी सफेद चमचमाती नई एस्टीम कार खड़ी थी...
कहानी अभी पूरी नहीं हुई है...
उसके बाद डॉक्टर साहब बहुत हिम्मत करके जंगल के राजा से बोले कि ये कार मेरी है, तब जंगल के राजा ने कहा कि अरे मेरे आदमियों को ये कार पसन्द आ गई होगी तो उठा के ले आया होगा, तुम कुछ खर्चा पानी दे दो मेरे आदमियों को और ले जाओ अपना कार...
खर्चा पानी 3 लाख रुपया के करीब, ये घटना 100% सत्य है।
जंगलराज की ऐसी और भी कहानियां है
Dr Gaurav Pradhan
वर्ष 1997 बिहार
गया के मशहूर सर्जन उस दिन बहुत खुश थे। उनके आई पी एस दामाद ने उनके जन्मदिन पर उन्हें नई चमचमाती गाड़ी भेंट की थी।
वह गाड़ी उस समय की सबसे बड़ी गाड़ी थी, मारुति एस्टीम। इसके टक्कर की बस एक ही गाड़ी थी उस समय प्रीमियर पद्मिनी का एन ई मॉडल। उन्हें क्लीनिक जाने में अब दिक्कत नहीं थी। मारुति 800 अब मेम साहब के काम आएंगी।
ठीक तीन दिन के बाद उनके घर पर सत्ताधारी पार्टी के विधायक पहुंचे। डाक्टर साहब ने सोचा कि हो सकता है किसी की सर्जरी के लिए आए हों? मगर विधायक जी ने गाड़ी की खबर सुनी थी और उसे देखने आए थे। फिर चाय पीने के बाद उन्होंने डाक्टर साहब से अनुरोध किया कि एक राउंड शहर का लगाना चाहते हैं, क्या परमिशन है?
इतनी छोटी सी बात!! सर्जन साहब ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
गाड़ी पर घूमने चले गए विधायक जी और साथ में ड्राइवर भी गया।
सर्जन साहब को उस दिन अपनी पुरानी मारुति से ही क्लिनिक जाना पड़ा, क्योंकि दिन के 11 बजे तक गाड़ी नहीं लौटी। फिर शाम हो गई। डॉ साहब जब ऑपरेशन कर के घर लौटे तब भी गाड़ी नहीं आई। फिर उन्होंने अपने कंपाउंडर को विधायक जी के स्थानीय निवास पर भेजा तो पता चला कि विधायक जी नई एस्टीम पर बैठ कर कल ही पटना चले गए हैं...
अब इनका माथा ठनका और गुस्सा भी आने लगा, तब इन्होंने अपने कुछ साथियों से बातें कीं। पटना का नंबर मिला तो उन्होंने फोन लगाया। पटना स्थित विधायक आवास से सूचना मिली कि विधायक जी तो एक सप्ताह के दौरे पर पूर्णिया कटिहार चले गए हैं...
अब अंत में इन्होंने अपने एस पी दामाद को फोन लगाया। उन्होंने कहा कि घबराने की बात नहीं है, कुछ बात हो गई होगी, गाड़ी मिल जाएगी। एसपी साहब ने गया के एसपी से बातें की। तुरंत कार्रवाई की बात की गई, मामला हाईफाई था, लिहाजा पुलिस एक्शन में आ गई। मगर गाड़ी गया में नहीं मिली।
फिर 10 दिनों के बाद डाक्टर साहब को पता चला कि विधायक जी लौट आए हैं। वे भागे भागे विधायक जी के घर पहुंचे। विधायक जी बड़ी आत्मीयता से मिले। कार की बाबत उन्होंने कहा कि गाड़ी तो उन्होंने उसी दिन छोड़ दिया था और ड्राइवर को तेल के पैसे देकर वापस कर दिया था। जरूर ड्राइवर नई गाड़ी लेकर भाग गया है। अब डाक्टर साहब बेहद परेशान हो गए। ये नई समस्या खड़ी हो गई।
फिर शुरू हुई कार हंट। जहां जहां दामाद जी की पैरवी पहुंच सकती थी, वहां वहां पुलिस को अलर्ट किया गया। कुछ डॉक्टर भी इस काम में लगाए गए मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात!!!!!
फिर पटना के एक डॉक्टर मित्र ने कहा कि एक बार लालूजी से मिलकर अपनी समस्या बताइए, काम हो जाएगा।
तो लालू जी से मिलने पहुंचे गया के मशहूर सर्जन, जिनका दामाद एक आई पी एस था और जिनकी मंथली प्रैक्टिस उस जमाने में लाखों में थी। लालू जी के निजी चिकित्सक ने मुलाकात का इंतजाम किया था। सवेरे 9 बजे 1 अणे मार्ग में लालू जी से मिलना तय हुआ।
डॉक्टर साहब 8 बजे ही आवास के बाहर पहुंच गए। लालू जी के निजी चिकित्सक ने उन्हें रिसीव किया और दोनों अंदर की ओर बढ़े।
सहसा सर्जन साहब ठिठक कर रुक गये। सामने बंगले के पोर्टिको में उनकी सफेद चमचमाती नई एस्टीम कार खड़ी थी...
कहानी अभी पूरी नहीं हुई है...
उसके बाद डॉक्टर साहब बहुत हिम्मत करके जंगल के राजा से बोले कि ये कार मेरी है, तब जंगल के राजा ने कहा कि अरे मेरे आदमियों को ये कार पसन्द आ गई होगी तो उठा के ले आया होगा, तुम कुछ खर्चा पानी दे दो मेरे आदमियों को और ले जाओ अपना कार...
खर्चा पानी 3 लाख रुपया के करीब, ये घटना 100% सत्य है।
जंगलराज की ऐसी और भी कहानियां है
Dr Gaurav Pradhan