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शरीरं सुरुपं तथा वा कलत्रं
यशश्चारू चित्रं धनं मेरुतुल्यम्
मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे
ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्

अर्थ : यदि शरीर रुपवान हो, पत्नी भी रूपसी हो और सत्कीर्ति चारों दिशाओं में विस्तरित हो, मेरु पर्वत के तुल्य अपार धन हो, किंतु गुरु के श्रीचरणों में यदि मन आसक्त न हो तो इन सारी उपलब्धियों से क्या लाभ?
शरीरं सुरुपं तथा वा कलत्रं यशश्चारू चित्रं धनं मेरुतुल्यम् मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम् अर्थ : यदि शरीर रुपवान हो, पत्नी भी रूपसी हो और सत्कीर्ति चारों दिशाओं में विस्तरित हो, मेरु पर्वत के तुल्य अपार धन हो, किंतु गुरु के श्रीचरणों में यदि मन आसक्त न हो तो इन सारी उपलब्धियों से क्या लाभ?
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