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एक गाँव में एक सेठ रहता था। एक बार राजा ने उसे चर्चा पर बुलाया। कुछ देर चर्चा के बाद राजा ने कहा

“महाशय, आप बहुत बड़े सेठ हैं, इतना बड़ा कारोबार है पर आपका लड़का इतना मूर्ख क्यों है ? उसे भी कुछ सिखायें। उसे तो सोने चांदी में मूल्यवान क्या है, यह भी नहीं पता।” यह कहकर राजा जोर से हंस पड़ा।

सेठ को बुरा लगा, वह घर गया व लड़के से पूछा “सोना व चांदी में अधिक मूल्यवान क्या है ?”

“सोना”, बिना एक पल भी गंवाए लड़के ने कहा।
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“तुम्हारा उत्तर तो ठीक है, फिर राजा ने ऐसा क्यूं कहा-? सभी के बीच मेरी खिल्ली भी उड़ाई।”
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लड़का बोला – “गाँव के पास ही मेरे स्कूल जाने के मार्ग पर राजा एक खुला दरबार लगाते हैं। मुझे देखते ही बुलवा लेते हैं। अपने एक हाथ में सोने का व दूसरे में चांदी का सिक्का रखकर, जो अधिक मूल्यवान है वह ले लेने को कहते हैं.. और मैं चांदी का सिक्का ले लेता हूँ। सभी ठहाका लगाकर हंसते हैं व मजा लेते हैं। ऐसा तक़रीबन हर दूसरे दिन होता है।”
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“फिर तुम सोने का सिक्का क्यों नहीं उठाते, चार लोगों के बीच अपनी फ़जीहत कराते हो व साथ में मेरी भी !”
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लड़का हँसा व हाथ पकड़कर पिता को अंदर ले गया। कपाट से एक पेटी निकालकर दिखाई जो चांदी के सिक्कों से भरी हुई थी।
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यह देख सेठ हतप्रभ रह गया।
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लड़का बोला “जिस दिन मैंने सोने का सिक्का उठा लिया उस दिन से यह खेल बंद हो जाएगा।
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वो मुझे मूर्ख समझकर मजा लेते हैं तो लेने दें, यदि मैं बुद्धिमानी दिखाउंगा तो कुछ नहीं मिलेगा। आपका बेटा हूँ.. अक़्ल से काम लेता हूँ।"
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मूर्ख होना अलग बात है और मूर्ख समझा जाना अलग..

स्वर्णिम मौके का फायदा उठाने से बेहतर है...
हर मौके को स्वर्ण में तब्दील करना।
एक गाँव में एक सेठ रहता था। एक बार राजा ने उसे चर्चा पर बुलाया। कुछ देर चर्चा के बाद राजा ने कहा “महाशय, आप बहुत बड़े सेठ हैं, इतना बड़ा कारोबार है पर आपका लड़का इतना मूर्ख क्यों है ? उसे भी कुछ सिखायें। उसे तो सोने चांदी में मूल्यवान क्या है, यह भी नहीं पता।” यह कहकर राजा जोर से हंस पड़ा। सेठ को बुरा लगा, वह घर गया व लड़के से पूछा “सोना व चांदी में अधिक मूल्यवान क्या है ?” “सोना”, बिना एक पल भी गंवाए लड़के ने कहा। . “तुम्हारा उत्तर तो ठीक है, फिर राजा ने ऐसा क्यूं कहा-? सभी के बीच मेरी खिल्ली भी उड़ाई।” . लड़का बोला – “गाँव के पास ही मेरे स्कूल जाने के मार्ग पर राजा एक खुला दरबार लगाते हैं। मुझे देखते ही बुलवा लेते हैं। अपने एक हाथ में सोने का व दूसरे में चांदी का सिक्का रखकर, जो अधिक मूल्यवान है वह ले लेने को कहते हैं.. और मैं चांदी का सिक्का ले लेता हूँ। सभी ठहाका लगाकर हंसते हैं व मजा लेते हैं। ऐसा तक़रीबन हर दूसरे दिन होता है।” . “फिर तुम सोने का सिक्का क्यों नहीं उठाते, चार लोगों के बीच अपनी फ़जीहत कराते हो व साथ में मेरी भी !” . लड़का हँसा व हाथ पकड़कर पिता को अंदर ले गया। कपाट से एक पेटी निकालकर दिखाई जो चांदी के सिक्कों से भरी हुई थी। . यह देख सेठ हतप्रभ रह गया। . लड़का बोला “जिस दिन मैंने सोने का सिक्का उठा लिया उस दिन से यह खेल बंद हो जाएगा। . वो मुझे मूर्ख समझकर मजा लेते हैं तो लेने दें, यदि मैं बुद्धिमानी दिखाउंगा तो कुछ नहीं मिलेगा। आपका बेटा हूँ.. अक़्ल से काम लेता हूँ।" . मूर्ख होना अलग बात है और मूर्ख समझा जाना अलग.. स्वर्णिम मौके का फायदा उठाने से बेहतर है... हर मौके को स्वर्ण में तब्दील करना।
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