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ठन गई
मौत से ठन गई

जूझने का मेरा इरादा न था
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था

रास्ता रोक वह खड़ी हो गई
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई

मौत की उमर क्या है ? दो पल भी नहीं
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ ?
ठन गई मौत से ठन गई जूझने का मेरा इरादा न था मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था रास्ता रोक वह खड़ी हो गई यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई मौत की उमर क्या है ? दो पल भी नहीं ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ ?
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