स्वस्थ परंपरा टूटती है तो विनाश होता है ।
अंग्रेजों के आने के पूर्व मूर्ति पूजा पूरे भारत में थी । अंग्रेजों ने संस्थाओं को बढ़ाकर उसका विरोध करवाया ।
परिणाम क्या निकला ?
चाँद मियाँ की ( मरणशील मनुष्य की ) मूर्ति बनने लगी ।
दूसरी स्वस्थ परंपरा …
भिक्षा मांगकर खाना संन्यास आश्रम के लिये धर्म था । संन्यासी, संग्रह कर ही नहीं सकता अतः भिक्षा ही उसका धर्म पूर्वक अधिकार था । गुरूकुल के विद्यार्थी भिक्षा माँग कर समाज की सहायता से पढ़ लिख लेते थे ।हज़ारों वर्षों से ब्राह्मणों ने भी भिक्षा मांगी पर साथ के साथ वे सांख्य न्याय वैशेषिक योग व्याकरण मीमांसा ज्योतिष इत्यादि भी समाज को निष्काम भाव से बाँट रहे थे ।
फिर आये गोरे अंग्रेज। उन्होंने भिक्षा को अपराध घोषित कर दिया । हमारे संन्यास आश्रम पर ही प्रहार कर दिया ।
काले अंग्रेजों ने उसको चलाये रखा ।
जो ब्राह्मण परिवार सदियों से पढ़ाकर , और भारत की सम्पन्नता में योगदान दे रहे थे वे भिखारी हो गये ।
और किताबी पेशेवर अपराधी, पेशेवर भिखारी बन गये । पर चूँकि हज़ारों वर्षों से सनातन हिन्दू धर्मी भिक्षाटन को संस्कार वंश चलाते आ रहे हैं अतः इन अपराधियों की मौज है ।
मैं स्वयम् सैकड़ों ब्राह्मण परिवारों को जानता हूँ जो भूखे रह जायेंगे पर माँगने नहीं जायेंगे ।
अंग्रेजों के आने के पूर्व मूर्ति पूजा पूरे भारत में थी । अंग्रेजों ने संस्थाओं को बढ़ाकर उसका विरोध करवाया ।
परिणाम क्या निकला ?
चाँद मियाँ की ( मरणशील मनुष्य की ) मूर्ति बनने लगी ।
दूसरी स्वस्थ परंपरा …
भिक्षा मांगकर खाना संन्यास आश्रम के लिये धर्म था । संन्यासी, संग्रह कर ही नहीं सकता अतः भिक्षा ही उसका धर्म पूर्वक अधिकार था । गुरूकुल के विद्यार्थी भिक्षा माँग कर समाज की सहायता से पढ़ लिख लेते थे ।हज़ारों वर्षों से ब्राह्मणों ने भी भिक्षा मांगी पर साथ के साथ वे सांख्य न्याय वैशेषिक योग व्याकरण मीमांसा ज्योतिष इत्यादि भी समाज को निष्काम भाव से बाँट रहे थे ।
फिर आये गोरे अंग्रेज। उन्होंने भिक्षा को अपराध घोषित कर दिया । हमारे संन्यास आश्रम पर ही प्रहार कर दिया ।
काले अंग्रेजों ने उसको चलाये रखा ।
जो ब्राह्मण परिवार सदियों से पढ़ाकर , और भारत की सम्पन्नता में योगदान दे रहे थे वे भिखारी हो गये ।
और किताबी पेशेवर अपराधी, पेशेवर भिखारी बन गये । पर चूँकि हज़ारों वर्षों से सनातन हिन्दू धर्मी भिक्षाटन को संस्कार वंश चलाते आ रहे हैं अतः इन अपराधियों की मौज है ।
मैं स्वयम् सैकड़ों ब्राह्मण परिवारों को जानता हूँ जो भूखे रह जायेंगे पर माँगने नहीं जायेंगे ।
स्वस्थ परंपरा टूटती है तो विनाश होता है ।
अंग्रेजों के आने के पूर्व मूर्ति पूजा पूरे भारत में थी । अंग्रेजों ने संस्थाओं को बढ़ाकर उसका विरोध करवाया ।
परिणाम क्या निकला ?
चाँद मियाँ की ( मरणशील मनुष्य की ) मूर्ति बनने लगी ।
दूसरी स्वस्थ परंपरा …
भिक्षा मांगकर खाना संन्यास आश्रम के लिये धर्म था । संन्यासी, संग्रह कर ही नहीं सकता अतः भिक्षा ही उसका धर्म पूर्वक अधिकार था । गुरूकुल के विद्यार्थी भिक्षा माँग कर समाज की सहायता से पढ़ लिख लेते थे ।हज़ारों वर्षों से ब्राह्मणों ने भी भिक्षा मांगी पर साथ के साथ वे सांख्य न्याय वैशेषिक योग व्याकरण मीमांसा ज्योतिष इत्यादि भी समाज को निष्काम भाव से बाँट रहे थे ।
फिर आये गोरे अंग्रेज। उन्होंने भिक्षा को अपराध घोषित कर दिया । हमारे संन्यास आश्रम पर ही प्रहार कर दिया ।
काले अंग्रेजों ने उसको चलाये रखा ।
जो ब्राह्मण परिवार सदियों से पढ़ाकर , और भारत की सम्पन्नता में योगदान दे रहे थे वे भिखारी हो गये ।
और किताबी पेशेवर अपराधी, पेशेवर भिखारी बन गये । पर चूँकि हज़ारों वर्षों से सनातन हिन्दू धर्मी भिक्षाटन को संस्कार वंश चलाते आ रहे हैं अतः इन अपराधियों की मौज है ।
मैं स्वयम् सैकड़ों ब्राह्मण परिवारों को जानता हूँ जो भूखे रह जायेंगे पर माँगने नहीं जायेंगे ।
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