अमृत और धनतेरस …
हम यह कभी न भूलें कि अमृत पीने के पश्चात भी देवता , देवासुर संग्राम हार रहे थे ।
क्योँकि देवताओं को अपने प्रयास का अभिमान हो गया था कि उन्होंने श्रम करके धन्वंतरि और अमृत प्राप्त किया है ।
जब देवताओं को हारते हुये करूणावरूणालय श्री हरि ने देखा तो वे देवताओं की सहायता करने उतरे …
जगदीश्वर को युद्ध में उतरता देख अमृत ने सोचा कि जब नारायण ही इनकी सहायता कर रहे हैं तब उसने भी अपना प्रभाव दिखाना आरम्भ कर दिया ।
मित्रों, कर्तव्य कर्म और पुरुषार्थ हम जम कर करें पर यह अपने कर्म का अभिमान हम न करें । फल, नारायण के ही अधीन है ।
हम यह कभी न भूलें कि अमृत पीने के पश्चात भी देवता , देवासुर संग्राम हार रहे थे ।
क्योँकि देवताओं को अपने प्रयास का अभिमान हो गया था कि उन्होंने श्रम करके धन्वंतरि और अमृत प्राप्त किया है ।
जब देवताओं को हारते हुये करूणावरूणालय श्री हरि ने देखा तो वे देवताओं की सहायता करने उतरे …
जगदीश्वर को युद्ध में उतरता देख अमृत ने सोचा कि जब नारायण ही इनकी सहायता कर रहे हैं तब उसने भी अपना प्रभाव दिखाना आरम्भ कर दिया ।
मित्रों, कर्तव्य कर्म और पुरुषार्थ हम जम कर करें पर यह अपने कर्म का अभिमान हम न करें । फल, नारायण के ही अधीन है ।
अमृत और धनतेरस …
हम यह कभी न भूलें कि अमृत पीने के पश्चात भी देवता , देवासुर संग्राम हार रहे थे ।
क्योँकि देवताओं को अपने प्रयास का अभिमान हो गया था कि उन्होंने श्रम करके धन्वंतरि और अमृत प्राप्त किया है ।
जब देवताओं को हारते हुये करूणावरूणालय श्री हरि ने देखा तो वे देवताओं की सहायता करने उतरे …
जगदीश्वर को युद्ध में उतरता देख अमृत ने सोचा कि जब नारायण ही इनकी सहायता कर रहे हैं तब उसने भी अपना प्रभाव दिखाना आरम्भ कर दिया ।
मित्रों, कर्तव्य कर्म और पुरुषार्थ हम जम कर करें पर यह अपने कर्म का अभिमान हम न करें । फल, नारायण के ही अधीन है ।
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