पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग के बारे में कई लेख सामने आ रहे है। राष्ट्रपति शासन ना लगाने के लिए वह लोग प्रधानमंत्री मोदी के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग कर रहे है, जो अपने आप को राष्ट्रवादी कहते है। जैसे की राहुल-अखिलेश-स्टालिन-केजरीवाल सरकार राष्ट्रपति शासन लगा देती?
फिर भी, एक प्रश्न पर विचार करते है? सोनिया सरकार ने इशरत जहाँ या फिर सोहराबुद्दीन शेख की पुलिस मुठभेड़ में हत्या के बाद नरेंद्र मोदी की गुजरात सरकार को बर्खास्त क्यों नहीं किया? आखिरकार सोनिया की प्रिय तीस्ता इत्यादि ऐसी मांग कर रही थी? क्योंकि सोनिया एवं उनके समर्थको का मानना था कि इशरत एवं सोहराबुद्दीन निर्दोष थे।
वर्ष 1994 के बाद कितने प्रांतो में अनुच्छेद 352 (इमरजेंसी) या अनुच्छेद 356 (राज्य सरकार बर्खास्त करना) लगाया गया था?
कारण यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने 1994 के बोम्मई निर्णय के द्वारा किसी राज्य में अनुच्छेद 356 लागू करने के लिए बहुत ऊँची सीमा तय कर दी है।
निर्णय में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कानून और व्यवस्था की समस्या संवैधानिक तंत्र टूटने के समान नहीं है। दंगे, विरोध प्रदर्शन या आपराधिक गतिविधि या अन्य अशांति का तात्पर्य राज्य के संवैधानिक ढांचे का पूरी तरह से टूटना नहीं है।
अनुच्छेद 356 लागू करने के लिए राज्य में संवैधानिक तंत्र का पूरी तरह से टूटना ज़रूरी है। संवैधानिक तंत्र के टूटने में ऐसी स्थितियाँ शामिल हैं जहाँ राज्य का शासन पंगु हो जाता है और सरकार असंवैधानिक तरीके से काम कर रही होती है; या संविधान के मूल सिद्धांतों को बनाए रखने में विफलता, जैसे कि विधानसभा को बुलाने में विफल होना या न्यायिक निर्णयों को लागू करने से मना करना या राज्य सरकार का कोई ऐसा कार्य जो देश की अखंडता और संप्रभुता को खतरे में डालता है (अर्थात अलग राष्ट्र की घोषणा)।
न्यायालय ने माना कि कानून और व्यवस्था की समस्याओं को प्रबंधित करना आम तौर पर राज्य सरकार की क्षमता में होता है। यदि राज्य सरकार अन्यथा संवैधानिक रूप से कार्य कर रही है और व्यवस्था को बहाल करने का प्रयास कर रही है, तो राष्ट्रपति शासन लगाने का कोई औचित्य नहीं है। कानून और व्यवस्था के मुद्दे, भले ही गंभीर हों, अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाने का औचित्य नहीं देते हैं।
इसलिए, अनुच्छेद 356 को प्रधानमंत्री की इच्छा से अब लागू नहीं किया जा सकता है। इसे अदालतें कुछ ही घंटो में निरस्त कर देंगी। ऐसे केसो की सुनवाई रात में भी की गई है।
राजीव एवं इंदिरा ने अनुच्छेद 356 को इतनी बार लागू किया था क्योंकि तब बोम्मई निर्णय नहीं था। उनके द्वारा अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग के कारण था कि सर्वोच्च न्यायालय को अनुच्छेद 356 की व्यापक व्याख्या करनी पड़ी।
रही बात अनुच्छेद 352 (इमरजेंसी) लगाने की, तो इंदिरा की इमरजेंसी के बाद मोरारजी सरकार ने संविधान में संशोधन करके "आंतरिक गड़बड़ी" वाला वाक्यांश हटाकर "सशस्त्र विद्रोह" वाक्यांश डाल दिया था। अर्थात, अब भारत में या किसी राज्य में या खंड में इमरजेंसी तभी लगाई जा सकती है जब वाह्य आक्रमण या आतंरिक सशस्त्र विद्रोह हो।
इसके अलावा, केंद्र तब तक केंद्रीय सुरक्षा बल नहीं भेज सकता जब तक कि राज्य सरकार इसके लिए अनुरोध न करे।
आप सोशल मीडिया पर अपशब्द लिखने के लिए स्वतंत्र है। क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 19 कुछ सीमाओं के अंतर्गत आपको अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मूलभत अधिकार देता है।
लेकिन राष्ट्र मेरी या आपकी व्यक्तिगत राय से नहीं चलता। यह संविधान के अनुसार चलता है।
    
  फिर भी, एक प्रश्न पर विचार करते है? सोनिया सरकार ने इशरत जहाँ या फिर सोहराबुद्दीन शेख की पुलिस मुठभेड़ में हत्या के बाद नरेंद्र मोदी की गुजरात सरकार को बर्खास्त क्यों नहीं किया? आखिरकार सोनिया की प्रिय तीस्ता इत्यादि ऐसी मांग कर रही थी? क्योंकि सोनिया एवं उनके समर्थको का मानना था कि इशरत एवं सोहराबुद्दीन निर्दोष थे।
वर्ष 1994 के बाद कितने प्रांतो में अनुच्छेद 352 (इमरजेंसी) या अनुच्छेद 356 (राज्य सरकार बर्खास्त करना) लगाया गया था?
कारण यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने 1994 के बोम्मई निर्णय के द्वारा किसी राज्य में अनुच्छेद 356 लागू करने के लिए बहुत ऊँची सीमा तय कर दी है।
निर्णय में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कानून और व्यवस्था की समस्या संवैधानिक तंत्र टूटने के समान नहीं है। दंगे, विरोध प्रदर्शन या आपराधिक गतिविधि या अन्य अशांति का तात्पर्य राज्य के संवैधानिक ढांचे का पूरी तरह से टूटना नहीं है।
अनुच्छेद 356 लागू करने के लिए राज्य में संवैधानिक तंत्र का पूरी तरह से टूटना ज़रूरी है। संवैधानिक तंत्र के टूटने में ऐसी स्थितियाँ शामिल हैं जहाँ राज्य का शासन पंगु हो जाता है और सरकार असंवैधानिक तरीके से काम कर रही होती है; या संविधान के मूल सिद्धांतों को बनाए रखने में विफलता, जैसे कि विधानसभा को बुलाने में विफल होना या न्यायिक निर्णयों को लागू करने से मना करना या राज्य सरकार का कोई ऐसा कार्य जो देश की अखंडता और संप्रभुता को खतरे में डालता है (अर्थात अलग राष्ट्र की घोषणा)।
न्यायालय ने माना कि कानून और व्यवस्था की समस्याओं को प्रबंधित करना आम तौर पर राज्य सरकार की क्षमता में होता है। यदि राज्य सरकार अन्यथा संवैधानिक रूप से कार्य कर रही है और व्यवस्था को बहाल करने का प्रयास कर रही है, तो राष्ट्रपति शासन लगाने का कोई औचित्य नहीं है। कानून और व्यवस्था के मुद्दे, भले ही गंभीर हों, अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाने का औचित्य नहीं देते हैं।
इसलिए, अनुच्छेद 356 को प्रधानमंत्री की इच्छा से अब लागू नहीं किया जा सकता है। इसे अदालतें कुछ ही घंटो में निरस्त कर देंगी। ऐसे केसो की सुनवाई रात में भी की गई है।
राजीव एवं इंदिरा ने अनुच्छेद 356 को इतनी बार लागू किया था क्योंकि तब बोम्मई निर्णय नहीं था। उनके द्वारा अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग के कारण था कि सर्वोच्च न्यायालय को अनुच्छेद 356 की व्यापक व्याख्या करनी पड़ी।
रही बात अनुच्छेद 352 (इमरजेंसी) लगाने की, तो इंदिरा की इमरजेंसी के बाद मोरारजी सरकार ने संविधान में संशोधन करके "आंतरिक गड़बड़ी" वाला वाक्यांश हटाकर "सशस्त्र विद्रोह" वाक्यांश डाल दिया था। अर्थात, अब भारत में या किसी राज्य में या खंड में इमरजेंसी तभी लगाई जा सकती है जब वाह्य आक्रमण या आतंरिक सशस्त्र विद्रोह हो।
इसके अलावा, केंद्र तब तक केंद्रीय सुरक्षा बल नहीं भेज सकता जब तक कि राज्य सरकार इसके लिए अनुरोध न करे।
आप सोशल मीडिया पर अपशब्द लिखने के लिए स्वतंत्र है। क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 19 कुछ सीमाओं के अंतर्गत आपको अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मूलभत अधिकार देता है।
लेकिन राष्ट्र मेरी या आपकी व्यक्तिगत राय से नहीं चलता। यह संविधान के अनुसार चलता है।
पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग के बारे में कई लेख सामने आ रहे है। राष्ट्रपति शासन ना लगाने के लिए वह लोग प्रधानमंत्री मोदी के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग कर रहे है, जो अपने आप को राष्ट्रवादी कहते है। जैसे की राहुल-अखिलेश-स्टालिन-केजरीवाल सरकार राष्ट्रपति शासन लगा देती?
फिर भी, एक प्रश्न पर विचार करते है? सोनिया सरकार ने इशरत जहाँ या फिर सोहराबुद्दीन शेख की पुलिस मुठभेड़ में हत्या के बाद नरेंद्र मोदी की गुजरात सरकार को बर्खास्त क्यों नहीं किया? आखिरकार सोनिया की प्रिय तीस्ता इत्यादि ऐसी मांग कर रही थी? क्योंकि सोनिया एवं उनके समर्थको का मानना था कि इशरत एवं सोहराबुद्दीन निर्दोष थे। 
वर्ष 1994 के बाद कितने प्रांतो में अनुच्छेद 352 (इमरजेंसी) या अनुच्छेद 356 (राज्य सरकार बर्खास्त करना) लगाया गया था?
कारण यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने 1994 के बोम्मई निर्णय के द्वारा किसी राज्य में अनुच्छेद 356 लागू करने के लिए बहुत ऊँची सीमा तय कर दी है।
निर्णय में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कानून और व्यवस्था की समस्या संवैधानिक तंत्र टूटने के समान नहीं है। दंगे, विरोध प्रदर्शन या आपराधिक गतिविधि या अन्य अशांति का तात्पर्य राज्य के संवैधानिक ढांचे का पूरी तरह से टूटना नहीं है।
अनुच्छेद 356 लागू करने के लिए राज्य में संवैधानिक तंत्र का पूरी तरह से टूटना ज़रूरी है। संवैधानिक तंत्र के टूटने में ऐसी स्थितियाँ शामिल हैं जहाँ राज्य का शासन पंगु हो जाता है और सरकार असंवैधानिक तरीके से काम कर रही होती है; या संविधान के मूल सिद्धांतों को बनाए रखने में विफलता, जैसे कि विधानसभा को बुलाने में विफल होना या न्यायिक निर्णयों को लागू करने से मना करना या राज्य सरकार का कोई ऐसा कार्य जो देश की अखंडता और संप्रभुता को खतरे में डालता है (अर्थात अलग राष्ट्र की घोषणा)।
न्यायालय ने माना कि कानून और व्यवस्था की समस्याओं को प्रबंधित करना आम तौर पर राज्य सरकार की क्षमता में होता है। यदि राज्य सरकार अन्यथा संवैधानिक रूप से कार्य कर रही है और व्यवस्था को बहाल करने का प्रयास कर रही है, तो राष्ट्रपति शासन लगाने का कोई औचित्य नहीं है। कानून और व्यवस्था के मुद्दे, भले ही गंभीर हों, अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाने का औचित्य नहीं देते हैं।
इसलिए, अनुच्छेद 356 को प्रधानमंत्री की इच्छा से अब लागू नहीं किया जा सकता है। इसे अदालतें कुछ ही घंटो में निरस्त कर देंगी। ऐसे केसो की सुनवाई रात में भी की गई है। 
राजीव एवं इंदिरा ने अनुच्छेद 356 को इतनी बार लागू किया था क्योंकि तब बोम्मई निर्णय नहीं था। उनके द्वारा अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग के कारण था कि सर्वोच्च न्यायालय को अनुच्छेद 356 की व्यापक व्याख्या करनी पड़ी।
रही बात अनुच्छेद 352 (इमरजेंसी) लगाने की, तो इंदिरा की इमरजेंसी के बाद मोरारजी सरकार ने संविधान में संशोधन करके "आंतरिक गड़बड़ी" वाला वाक्यांश हटाकर "सशस्त्र विद्रोह" वाक्यांश डाल दिया था।  अर्थात, अब भारत में या किसी राज्य में या खंड में इमरजेंसी तभी लगाई जा सकती है जब वाह्य आक्रमण या आतंरिक सशस्त्र विद्रोह हो। 
इसके अलावा, केंद्र तब तक केंद्रीय सुरक्षा बल नहीं भेज सकता जब तक कि राज्य सरकार इसके लिए अनुरोध न करे।
आप सोशल मीडिया पर अपशब्द लिखने के लिए स्वतंत्र है। क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 19 कुछ सीमाओं के अंतर्गत आपको अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मूलभत अधिकार देता है। 
लेकिन राष्ट्र मेरी या आपकी व्यक्तिगत राय से नहीं चलता। यह संविधान के अनुसार चलता है।
          
                    
          
          
            
            
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