क्या हम झूठ ईश्वर की मर्जी से बोलते हैं ? चोरी ईश्वर की मर्जी से करते हैं ? आसुरी वृत्ति के लोग अपहरण, बलात्कार, मर्डर आदि सभी कुछ ईश्वर की मर्जी से ही करते हैं ?


यदि ऐसा है तो फिर ईश्वर ने वेदों में क्यों शिक्षा दी कि " सत्यं वद " सत्य बोलो ,"अक्षैर्मादीव्य" जुआं मत खेलो , " कस्य स्विद्धनं मा गृध " किसी के धन पर गिद्ध दृष्टि मत रखो " आदि आदि । यह कैसा न्यायकारी , दयालु ईश्वर हुआ जो पहले अपनी मर्जी से मनुष्य से पाप कर्म कराए , और फिर करने वाले को दण्ड भी दे । यह तो ऐसा ही आचरण हुआ जैसे कोई अध्यापक अपनी आदत से मजबूर होकर किसी विद्यार्थी से सिगरेट या शराब मंगवाए और फिर उसी लाने वाले विद्यार्थी को दण्डित भी करे ।

क्या इसे आप ठीक कहेंगे ? ईश्वर ऐसा अन्यायी नहीं हो सकता है कि जो पहले नियम बनाए और फिर स्वयं ही उन्हें तुड़वाए । और नियम तोड़ने वाले को पापी ठहराए ।

यह ठीक है कि सभी प्राकृतिक घटनाएं ईश्वर के नियमानुसार और उसी की ईक्षण शक्ति से ही होती हैं । लेकिन मनुष्य जो कुछ अच्छे या बुरे कर्म करता है वह अपनी मर्जी से करता है । इसके लिए ईश्वर ने मनुष्य को बुद्धि दी है जिससे वह पूर्वापर विचार करके करने योग्य कर्मों को करे और अकरणीय कर्मों को छोड़ दे । इसके लिए उसने मनुष्य को वेद रूपी ज्ञान दिया है ।

और जब भी पापाचरण करने में मनुष्य प्रवृत्त होता है तो उसे सचेत भी करता है । जिसे हम अन्तरात्मा की आवाज कहते हैं । तथा श्रेष्ठ आचरण करने पर हमारे अन्दर उत्साह ,उंमग,आत्मिक संतुष्टि जैसी भावनाएं देकर अच्छा करने के लिए प्रोत्साहित भी करता है ।

लेकिन मनुष्य अपनी ईर्ष्या, द्वेष ,लोभ, अंहकार आदि स्वाभाविक वृत्तियों के कारण अपना तात्कालिक सांसारिक सुख देखकर ही कार्यों को करता है और तदनुरूप फल भोगता है ।

सारांश यह है कि ईश्वर ने मनुष्य को कर्म करने में स्वतन्त्र और फल भोगने में परतन्त्र बनाया है अतः यह कहना उचित नहीं है कि मनुष्य सभी कर्म ईश्वर की मर्जी से करता है ।